रणवीर सिंह की ‘धुरंधर’ ने भारतीय सिनेमा में बढ़ाई हिंसा की सीमा, क्या होगा इसका असर?
रणवीर सिंह की फिल्म धुरंधर ने भारतीय सिनेमा में हिंसा की सीमा को एक नये स्तर पर पहुंचा दिया है। इस फिल्म में दर्शाई गई हिंसक दृश्यशैली और थ्रिलिंग एक्शन सीक्वेंस ने पूरे फिल्म इंडस्ट्री में तेज़ी से चर्चा का विषय बना दिया है। फिल्म के निर्माताओं ने हिंसा को इतनी कथात्मक गहराई और यथार्थवाद के साथ प्रस्तुत किया है कि दर्शकों के बीच इसके प्रभाव को लेकर विभिन्न मत सामने आ रहे हैं।
भारतीय सिनेमा में हिंसा की बढ़ती सीमा
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय फिल्मों में हिंसा के दृश्यों में वृद्धि देखी गई है, लेकिन ‘धुरंधर’ ने इसे और ज्यादा उभरकर सामने रखा है। इसे लेकर विशेषज्ञों और फिल्म समीक्षकों ने यह तर्क दिया है कि यह फिल्म एक नया ट्रेंड सेट कर सकती है जहाँ हॉलीवुड स्टाइल की ग्राफिक और रियलिस्टिक हिंसा को भारतीय सिनेमाघरों में भी प्रमुखता मिलेगी।
फिल्म में हिंसा के प्रभाव
धुरंधर में दिखायी गई हिंसा सिर्फ शारीरिक संघर्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक और सामाजिक स्तर पर भी दर्शकों को प्रभावित करती है। इससे युवाओं में हिंसा को लेकर जागरूकता बढ़ाने और या इसके गलत प्रभावों पर विचार करने का अवसर मिलता है। वहीं, यह सवाल भी उठता है कि क्या ऐसी हिंसा की प्रस्तुति समाज में नकारात्मक प्रभाव नहीं डालेगी?
इसका क्या होगा असर?
- फिल्म उद्योग पर प्रभाव: अन्य फिल्म निर्माता भी इस हिंसा-प्रधान शैली को अपनाने की कोशिश कर सकते हैं, जिससे इंडियन सिनेमा में हिंसा का स्तर और बढ़ सकता है।
- दर्शकों पर प्रभाव: कुछ दर्शक इसकी रियलिस्टिक हिंसा को पसंद कर सकते हैं, लेकिन कुछ को यह अत्यधिक और प्रभावित करने वाला लग सकता है।
- सामाजिक दृष्टिकोण: हिंसा को बढ़ावा देने वाली फिल्मों पर सामाजिक बहस भी शुरू हो सकती है, जिससे फिल्म कंटेंट को लेकर नियम और नियंत्रण मजबूत हो सकते हैं।
अंततः, रणवीर सिंह की ‘धुरंधर’ फिल्म ने भारतीय सिनेमा में एक नई बहस छेड़ दी है कि हिंसा की सीमा कहां होनी चाहिए और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह फिल्म निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण क्रांतिदायक प्रयास के रूप में याद की जाएगी।